Tuesday 17 December 2019

मीडिया का एकतरफा संवाद का दौर अब ख़त्म!

पारम्परिक मीडिया 
बनाम नया मीडिया

  बदलाव प्रकृति का नियम है और इससे कभी कोई अछूता नहीं रहा! व्यक्ति के स्वभाव, आसपास के परिवेश के साथ-साथ सूचना पाने का स्रोत भी बदला है। पहले जहां अखबार और रेडियो ही सूचनाओं के स्रोत थे, वहीं इसमें समय के साथ टेलीविजन भी जुड़ा। जब यह नया माध्यम मीडिया से जुड़ा तो कई लोगों का कहना था कि समाचार और सूचना का यह माध्‍यम बेहद सशक्‍त है! ये अखबार एवं रेडियो को काफी पीछे छोड़ देगा! लेकिन, ऐसा नहीं हुआ। नए अखबारों के आने के साथ पुराने अखबारों के भी नए संस्‍करण निकले! इस कड़ी में वेब पत्रकारिता जुड़ गई, जो सबसे नए कलेवर का मीडिया है। इसका सबसे सशक्त पक्ष है कि यह सबके एंड्राइड मोबाइल में उपलब्ध है। इस मीडिया ने अख़बारों का एकतरफा संवाद का बंधन भी ख़त्म कर दिया। अब पाठक ख़बरों पर अपनी प्रतिक्रिया दे सकता है, जो अभी तक संभव नहीं था। 
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- एकता शर्मा

   नए ज़माने की पत्रकारिता और पारंपरिक पत्रकारिता की शैली में जमीन-आसमान का अंतर है। पुरानी शैली की पत्रकारिता में एक तरफा संवाद होता था। उसमे भी विलम्ब होता था। किसी रपट के लिखे जाने और उसके पाठक तक पहुँचने में अमूमन 12 घंटे का समय लगता था। फिर, रपट को पढ़कर, सुनकर या देखकर पाठक के मन में कई सारे सवाल खड़े होना स्वाभाविक है। वह अपनी जिज्ञासाओं का जवाब जानने को व्याकुल रहता था। सवाल पूछने को लेकर भी वो आतुर होता था! मगर, उसके पास कोई जरिया नहीं होता था। उसके सवाल अनुत्तरित रह जाते थे। आज वह जमाना नहीं है। अब संवाद दो-तरफ़ा होता है। पाठक कोई रचना या कोई रपट या कोई अदना सा विचार जब वेब पर पढ़ते हैं, तो तत्काल अपनी टिप्पणी के माध्यम से सवाल दाग सकते हैं। पसंद न आए तो लिखी सामग्री की बखिया उधेड़ सकते हैं! लिखने वाला पाठकों के सवालों के जवाब भी दे सकता है। विचारों को प्रकट करने का इससे बेहतरीन माध्यम शायद कोई दूसरा नहीं हो सकता।
    ये भी सही है कि पारंपरिक पत्रकारिता में लचीलापन नहीं था। यदि पत्र-पत्रिका माध्यम है, तो उसमें चलचित्र व दृश्य श्रव्य माध्यम का अभाव होता है। रेडियो में सिर्फ श्रव्य माध्यम होता है व क्षणिक होता है तो टीवी में दृश्य-श्रव्य माध्यम होता है। लेकिन, इसमें पठन सामग्री नहीं होती। यह भी क्षणभंगुर होता है। किसी खबर का कोई अंश उसके चलते रहने तक ही जिंदा रहता है, उसके बाद वह दफ़न हो जाता है! देखा जाए तो वेब की दुनिया में हिंदी पत्रकारिता अपने शैशव काल से गुजर रही है। इसके बावजूद बहुत कम समय में सायबर जगत में समाचारों व विचारों में हिंदी का प्रयोग तेजी से बढ़ता दिखाई दिया! वास्तव में ये अंग्रेजी की बेडि़यां तोड़ने का फरमान जैसा प्रतीत होता है। इसके बावजूद हिंदी का व्‍यापक इस्‍तेमाल सूझबूझ व सहजता के साथ करना होगा, ताकि हमारी मातृभाषा केवल मात्र भाषा बनकर न रह जाए। अभी तक हमारे पास सूचना के तीन माध्यम थे प्रिंट मीडिया, रेड़ियो और टेलीविजन! परन्तु अब कलम विहीन पत्रकारिता के रुप में साइबर जर्नलिजम     का सूत्रपात हुआ। जिस समाचार के लिए कुछ समय पहले तक घंटों इंतजार करना पड़ता था, वह अब पल    भर में हमारे दृश्य पटल पर होता है। इसे विस्तार से पढ़ा भी जा सकता है और संग्रहित भी किया जा सकता    है।  महत्वपूर्ण राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय समाचार पत्रों के इंटरनेट संस्करणों ने एक नई ई-जर्नलिज्म की    शुरूआत की है।
 
    अखबार में जहां हम समाचार पढ़ते हैं, वहीं इलेक्‍ट्रॉनिक और रेडियो माध्‍यम में उन्‍हें सुनते हैं। जबकि, वेब में समाचारों को देखा जाता है। पढ़ने, सुनने और देखने की अलग-अलग विशेषताओं की वजह से यहां काम में आने वाले शब्‍दों का चयन भी इसी के अनुरुप करना पड़ता है। तीनों माध्‍यमों के शब्‍दों को एक-दूसरे में काम में लेने से इसका वास्‍तविक आनंद कम हो जाता है। इस समय वेब में जो कुछ लिखा जा रहा है, उसमें लेखक जो लिख रहे हैं या फिर जो समाचार आ रहे हैं वे जस के तस जा रहे हैं। वेब पत्रकारिता के लिए जरुरी देखने वाले शब्‍दों को गढ़ने का कार्य अभी शुरू नहीं हुआ है। एक अहम बात देखें तो वेब पत्रकारिता में आने वाले पूर्णकालिक पत्रकारों की संख्‍या प्रिंट और इलेक्‍ट्रॉनिक माध्‍यम की तुलना में काफी कम है। प्रिंट और इलेक्‍ट्रॉनिक माध्‍यम में काम कर रहे पत्रकारों का ही वेब पत्रकारिता में अधिक योगदान है। इन्‍हीं माध्‍यमों के पत्रकार समय-समय पर स्‍टोरी और लेख से वेब पत्रकारिता को आगे बढ़ाने में योगदान दे रहे हैं।
  सूचना प्रौद्योगिकी और आधुनिक संचार क्रांति के इस युग में यदि हम यह स्वीकार लें कि देश की एक सम्पर्क भाषा जरुरी है, तो वह केवल हिन्दी ही हो सकती है। इसलिए कि हिन्दी ही वह भाषा है जो हर उस चुनौती का सामना करने में समर्थ है, जो उसके सामने खड़ी होगी। इंटरनेट ही ऐसा मंच है, जहां से हम अपनी मातृभाषा को अंतर्राष्ट्रीय पटल पर चमका सकते हैं। फिलहाल हिंदी के करीब 2500 दैनिक तथा 10000 के आसपास साप्ताहिक समाचार पत्र प्रकाशित हो रहे हैं! परन्तु, इनमें से दो दर्जन के भी इंटरनेट संस्करण नहीं है। विडम्बना है कि इनमें से अधिकतर समाचार पत्रों की वेबसाइटों पर अखबारों की खबर ही ज्यों की त्यों परोसी जाती है। इन वेबसाइटों में समाचारों को अपडेट करने वाले वेब पोर्टलों की संख्या न के बराबर है। सीधा कारण यह है कि इन वेबसाइटों को विज्ञापन के रूप मे मिलने वाली कमाई बहुत कम है। बाज़ारवाद व प्रतिस्‍पर्धा की दौड़ में धन के बिना इंटरनेट पोर्टल को समय के साथ चलाना काफी कठिन है। समाचार पोर्टलों पर समाचार पढ़ने के साथ-साथ कुछ अंतर्राष्ट्रीय समाचार संगठनों ने हिन्दी मे समाचार सुनाने की सुविधा भी प्रदान की है।
   एक सूचना को विश्व के कोने कोने मे पहुंचाने के लिए एक संदेश एक भाषा से दूसरी, दूसरी से तीसरी और तीसरी से चौथी भाषा की गोद में कूदता हुआ विश्व के सभी उन्नत भाषाओं की गोदे मे खेलने लगा है। इंटरनेट पत्रकारिता ने करीब दस साल पहले हमारे देश में दस्तक दी थी। कुछ समय पहले तक जहां हमें अपनी समाचार पढ़ने संबंधी जरूरतों की पूर्ति के लिए समाचार पत्र, समाचार सुनने के लिए रेडियो तथा समाचार देखने के लिए टेलीविजन पर निर्भर रहना पडता था। वहीं, अब समाचार पढ़ने, सुनने व देखने का एक स्थान इंटरनेट समाचार पोर्टल के रूप में विकसित हो चुका है। वेब पत्रकारिता पर काफी लम्बे समय तक अंग्रेजी भाषा का कब्ज़ा रहा है। लेकिन, पांच-छह सालों से हिन्दी का प्रयोग समाचार पोर्टल के रूप में बढ़ने लगा है। ताजा समाचारों से लैस वेबसाइटों ने समाचारों की रुपरेखा को नया आयाम प्रदान किया है।
  आज मीडिया का सबसे तेजी से विकसित होने वाला माध्यम वेब पत्रकारिता बन गया है। इसमें वेब पत्र, जर्नल, ब्लॉग और पत्रिकाओं का जाल सा बिछ गया है। छोटे-बड़े हर शहर और यहाँ तक कि गाँव में भी वेब पत्रकारिता पहुँच गई! मीडिया के पूरे बाजार की नजर भी आज हिंदी की वेब पत्रकारिता पर है। ख़ास बात ये कि यूरोप के लोग सही खबरों के लिए न्यूज़ चैनलों और अख़बारों से कहीं ज्यादा वेबसाइट्स पर भरोसा करते है। क्योंकि, आप न सिर्फ दूसरो की विचारधारा से परिचित होते हैं, बल्कि उस पर अपनी प्रतिक्रिया भी दे सकते हैं। ये सही भी है कि ख़बरों के वेब पोर्टल्स हमेशा अपडेट होते हैं, इसलिए उन पर ताजा और सही ख़बरें पढ़ने को मिलती है।
  पत्रकारिता की अब कोई भौगोलिक सीमा नहीं बची। यह दुनिया के हर कोने में आसानी से उपलब्ध हो जाती है। यही इसकी सबसे बड़ी ताकत है। इसमें हर पल कुछ नया जुड़ रहा है। अनेक पत्रिकाएं हैं, जो एक स्तरीय सामग्री संयोजित कर पाठकों तक ला रहीं है। हिंदी में सामग्री की संख्या और स्तर का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है। यह माध्यम हिन्दी साहित्य में भी नई शक्ति का भी संचार कर रहा है। क्योंकि, आज भागमभाग की दुनिया में किसी के पास इतना समय नहीं है, कि वह अपनी पसंद की पत्रिकाएं ढूंढे और खरीदें। वास्तव में तेजी से बदलती दुनिया, बदलते शहरीकरण और जड़ों से उखड़ते लोगों ने ही इंटरनेट को लोकप्रिय किया है। कभी किताबें, अखबार और पत्रिकाएं दोस्त हुआ करते थे। आज आपका सबसे अच्छा दोस्त इंटरनेट है! क्योंकि, यह दोतरफा संवाद का माध्यम जो है। प्रसारित सामग्री पर तत्काल प्रतिक्रिया ने इसे सबसे ज्यादा लोकप्रिय बनाया। पढ़ने वाले के लिए इंटरनेट पर सब कुछ मुहैया है। देश में साहित्यिक पत्रिकाओं का संचालन बहुत कठिन और श्रम साध्य काम है। ऐसे में वेब पर पत्रिका का प्रकाशन तकनीकी दक्षता और सीमित संसाधनों में भी किया जा सकता है। ख़ास बात ये कि वेब पत्रिका का भविष्य उसकी गुणवत्ता वाली पठनीय सामग्री पर अधिक निर्भर है न कि उसकी विपणन रणनीति पर। जबकि, अखबार और पत्रिकाएं अपनी सरकुलेशन पॉलिसी और प्रबंधन के दम पर ही जीवित रहने के लिए मजबूर हैं।
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