Saturday 15 June 2019

दर्शकों के दिल से उतर गया रोमांस का खुमार!

- एकता शर्मा  
 न दिनों जो फ़िल्में आ रही है, उनमें एक बात कॉमन है कि उनमें प्रेम नदारद है! कोई भी फिल्मकार प्रेम की कहानियों पर फिल्म बनाने की हिम्मत नहीं कर रहा! बड़ी मुश्किल से करण जौहर ने 'स्टूडेंट ऑफ़ द ईयर-2' और 'कलंक' जैसी प्रेम कहानियाँ बनाने की रिस्क ली, तो नतीजा सबके सामने है। दोनों फिल्मों को दर्शकों ने घास तक नहीं डाली! जबकि, सर्जिकल स्ट्राइक पर बनी 'उरी' और जाँबाज सिख सैनिकों की फिल्म 'केसरी' को हाथों-हाथ लिया गया।दरअसल, ये दर्शकों की बदली रूचि है! वे नकली कहानियों से ऊब चुके हैं और कुछ जीवन से जुड़ा सच देखना चाहते हैं।      
  प्रेम हिंदी फिल्मों के कथानक का स्थाई भाव रहा है! श्वेत-श्याम से लगाकर रंगीन फिल्मों तक जो बात कॉमन रही, वो है प्रेम कहानियां! फिल्मों की कहानी चाहे एक्शन हो, सामाजिक हो, कॉमेडी या फिर हॉरर! हर फिल्म में कोई न कोई लव स्टोरी जरूर होती है। बल्कि, प्रेम के बहाने ही फिल्म के कथानक को आगे बढ़ाया जाता रहा! यहाँ तक कि आजादी के संघर्ष वाली फिल्मों में भी नायक की कहीं न कहीं आँख लड़ती ही थी! लेकिन, अब लगता है जैसे हिंदी फिल्मों की कहानियों में मोहब्बत हाशिए पर आ गई! सीधे शब्दों में कहा जाए तो फिल्मों ने मोहब्बत से तलाक़ ले लिया! पिछले सालों में आई ज्यादातर हिट फिल्मों के कथानक में प्रेम नदारद था! यदि किसी फिल्म में प्रेम प्रसंग था भी तो महज कहानी को आगे बढ़ाने के लिए थे! फिल्म की मूल कहानी मोहब्बत के लिए सब कुछ दांव पर लगाने पर केंद्रित नहीं था।
  अब लगता है वो दिन ढल रहे हैं, जब फिल्म का पूरा कथानक हीरो-हीरोइन और खलनायक पर ही रच दिया जाता था। सामाजिक फ़िल्में बनाने के लिए पहचाने जाने वाले 'राजश्री' ने भी ग्रामीण परिवेश में कच्चे और सच्चे प्रेम को ही सबसे ज्यादा भुनाया! लेकिन, बीते साल की अधिकांश अच्छी फ़िल्में दर्शकों के बदलते नजरिए का संकेत है। जिस तरह हॉलीवुड में स्टोरी और कैरेक्टर को ध्यान में रखकर फ़िल्में बनती है, वही चलन अब बॉलीवुड में भी आने लगा! इसलिए कि नई पीढ़ी के जो दर्शक हॉलीवुड की फिल्मों को पसंद करते हैं, वे हिंदी फिल्मों में भी वही देखना चाहते हैं। शायद यही कारण है कि राजेश खन्ना के बाद रोमांटिक फिल्मों के सबसे चहेते नायक रहे शाहरुख़ खान ने भी फैन, डियर जिंदगी, रईस और जीरो जैसी फिल्मों में काम करने का साहस किया। शाहरूख़ और आलिया भट्ट की 'डियर ज़िंदगी' में तो मोहब्बत नदारद ही थी। इसमें शाहरुख़ ने उम्रदराज काउंसलर किरदार निभाया है। 'फ़ैन' में तो स्टोरी ही एक हीरो और उसके एक चाहने वाले पर केंद्रित थी! और 'रईस' तो एक माफिया की ही कहानी है। अब वो वक़्त शायद चला गया जब नायक, नायिका हमेशा मिलन को बेताब रहा करते थे। 'एमएस धोनी : द अनटोल्ड स्टोरी' में तो पूरा फ़ोकस ही क्रिकेटर की ज़िंदगी है। दो प्रेम प्रसंग भी हैं, पर सिर्फ कहानी को आगे बढ़ाने के लिए!
 बजरंगी भाईजान, सुल्तान, दंगल, रुस्तम, नीरजा, पिंक, कहानी-2, एयरलिफ्ट, नील बटे सन्नाटा, उड़ता पंजाब, एमएस धोनी से लगाकर 'काबिल' और 'जॉली एलएलबी-2' तक में हीरोइन उपयोगिता नाम मात्र की रही। करण जौहर की फ़िल्म 'ऐ दिल है मुश्किल' में तो ब्रेकअप को सेलिब्रेट किया गया। आलिया भट्ट ने भी 'डियर ज़िंदगी' में ब्रेकअप के बाद ज़िंदगी को कहा जस्ट गो टू हेल! सलमान खान की 'बजरंगी भाईजान' और 'सुल्तान' दोनों ही फिल्मों में हीरोइन कहीं भी कहानी पर बोझ नहीं लगती! अक्षय कुमार की 'रुस्तम' वास्तव में एक प्रेम कहानी है, लेकिन उसकी कहानी का आधार कोर्ट केस ही रहता है। सोनम कपूर की फिल्म 'नीरजा' तो पूरी तरह एक एयर होस्टेस के कर्तव्य कहानी है। वास्तव में प्रेम कहानी को हाशिए पर रखने का ये ट्रेंड धीरे-धीरे आया और सफल भी हुआ! इसलिए अब समझा जा सकता है कि आगे आने वाली फिल्मों का कथानक बदला नजर आएगा। हीरो, हीरोइन फिल्म में होंगे तो, पर वे रोमांस करें ये जरुरी नहीं है।    
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