Saturday 15 June 2019

गिरीश कर्नाड नहीं रहे, अब 'टाइगर' की खबर कौन रखेगा?

- एकता शर्मा 

 लमान खान की फिल्म 'टाइगर' और 'टाइगर जिंदा है' में ख़ुफ़िया एजेंसी 'रॉ' के चीफ डॉ शेनॉय एक ऐसा किरदार था, जिसे लोग भूल नहीं पाए थे! ख़ुफ़िया एजेंट 'टाइगर' यानी सलमान को किस मिशन पर लगाना है, ये जिम्मा डॉ शेनॉय का ही था! लेकिन, अब उन्हें भूलना होगा! क्योंकि, वे अब इस दुनिया से बिदा हो गए! सलमान की इन दोनों फिल्मों में वही ऐसा किरदार था, जिसे 'टाइगर' की खबर होती थी! लेकिन, अब जबकि वे नहीं रहे 'टाइगर' की खबर कौन रखेगा?   
    गिरीश कर्नाड की उम्र 81 साल थी। वे एक एक्टर होने के साथ-साथ लेखक, अवॉर्ड विजेता नाटक लेखक और डायरेक्टर भी थे। उनकी पहली फिल्म 1970 में कन्नड़ भाषा में 'संस्कार' आई थी। इस फिल्म को राष्ट्रपति का गोल्डन लोटस अवॉर्ड मिला था। इसके बाद उन्होंने कई हिंदी फिल्मों में काम किया! लेकिन, उनकी आखिरी फिल्म भी कन्नड़ की थी, जो पिछले साल 26 अगस्त को रिलीज हुई! हिंदी की उनकी अंतिम फ़िल्म सलमान खान के साथ 'टाइगर ज़िंदा है' थी! उनकी हिट कन्नड़ फ़िल्मों में से तब्बालियू मगाने, ओंदानोंदु कलादाली, चेलुवी, कादु और कन्नुड़ु हेगादिती को गिना जा सकता है!
  वे लम्बे समय से बीमार थे। 'टाइगर जिंदा है' में भी दर्शकों ने उन्हें नाक में ऑक्सीजन की नली लगाए हुए देखा था! दर्शकों को लगा कि उनका ये गेटअप किरदार का हिस्सा है, जबकि वास्तव में गिरीश कर्नाड को ऑक्सीजन की जरुरत लगती थी! सोमवार सुबह उन्होंने बेंगलुरु के अस्पताल में अपनी अंतिम सांस ली! उनका जन्म 19 मई, 1938 को महाराष्ट्र के माथेरान में हुआ था। उन्होंने धारवाड़ के कर्नाटक विश्वविद्यालय से स्नातक किया। बाद में वे एक रोड्स स्कॉलर के रूप में इंग्लैंड गए। कर्नाड ने ऑक्सफोर्ड से दर्शनशास्त्र, राजनीति शास्त्र और अर्थशास्त्र में मास्टर्स की डिग्री ली थी। 1963 में वे ऑक्सफोर्ड यूनियन के प्रेसीडेंट भी बने थे।
  हिंदी में उनकी शुरूआती फ़िल्में कलात्मक फ़िल्में निशांत, मंथन और 'पुकार' थी! नागेश कुकुनूर की इक़बाल, डोर, '8x10 तस्वीर' और 'आशाएं' में भी उनके किरदार दर्शकों को याद हैं। आरके नारायण की किताब पर बने प्रसिद्ध टीवी सीरियल 'मालगुड़ी डेज़' में उन्होंने बाल कलाकार स्वामी के पिता का किरदार निभाया था। विज्ञान पर आधारित एक टीवी कार्यक्रम 'टर्निंग पॉइंट' में वे होस्ट बने थे।
  गिरीश कर्नाड के लिखे तुगलक, हयवदन, तलेदंड, नागमंडल व ययाति जैसे नाटक बहुत लोकप्रिय हुए थे। इन्हें कई भाषाओं में अनुदित कर परफॉर्म भी किया जा चुका है। गिरीश कर्नाड की कन्नड़ और अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं में उनकी समान पकड़ थी। उन्हें 1994 में साहित्य अकादमी, 1998 में ज्ञानपीठ, 1974 में पद्म श्री, 1992 में पद्म भूषण, 1972 में संगीत नाटक अकादमी, 1992 में कन्नड़ साहित्य अकादमी, 1998 में ज्ञानपीठ और 1998 में कालिदास सम्मान से सम्‍मानित किया गया था। कर्नाड को चार बार फिल्म फेयर अवॉर्ड मिले!
  फिल्मों, नाटकों, लेखन, निर्देशन के अलावा भी गिरीश कर्नाड ने अपनी प्रतिभा कई क्षेत्रों में दिखाई! वे बहुमुंखी प्रतिभा के धनी थे। 60 के दशक में नाटक लेखन से ही गिरीश कर्नाड की पहचान बन गई थी! कन्नड़ नाटकों के लेखन में गिरीश कर्नाड की वही भूमिका थी, जो बंगाली में बादल सरकार, मराठी में विजय तेंदुलकर और हिंदी में मोहन राकेश जैसे नाटककारों की मानी जाती है। वे करीब 5 दशक से ज्यादा समय तक नाटकों के लिए सक्रिय रहे! उन्होंने अंग्रेजी के भी कई प्रसिद्द नाटकों का अनुवाद किया! खुद गिरीश कर्नाड के नाटक भी कई भारतीय भाषाओं में अनुदित हुए। गिरीश कर्नाड को दक्षिण भारतीय रंगमंच और फिल्मों का पितामह माना जाता है।
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