Saturday 15 June 2019

संतान के प्रति पिता का प्रेम अव्यक्त भाव!

'फादर्स-डे' के लिए

  सूर्य प्रतिदिन उदित हो अपने प्रकाश से और प्रकाश में समाहित ऊर्जा से समस्त संसार को जीवन प्रदान  कर  और समस्त प्राणियों के जीवन को सुचारू चलने की व्यवस्था करता है, परिवार में वही स्थान पिता का है। वह परिवार की ऊर्जा स्त्रोत तथा शक्तिपूंज होता है। पिता की दिनचर्या अपने परिवार की सुचारू जीवन के लिए होती है! वो न सिर्फ माता को बीज प्रदान कर अपनी संतान का निर्माण करता है, वरन उसे नित्य अपनी आजीविका से सींच कर एक विशाल वृक्ष बनाने में अपना पूर्ण सहयोग भी प्रदान करता है। पिता का कलेजा मजबूत होता है, तो केवल यह नारियल के ऊपरी आवरण की तरह होता है। अंदर से वह उतना ही नरम और शुभ्र होता है। उसकी आंखें भले ही नम न दिखाई दे, लेकिन यह केवल एक पिता ही जानता है कि न जाने कितनी बार उसने रात के अंधेरे में चुपचाप अपने तकिए को आसुंओं से भिगोया है। यदि वह अपने आंसुओं को सुखा लेता है, तो इसका कारण यही है कि उसके आंसुओं को देखकर उसकी संतान टूट न जाए।
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- एकता शर्मा 

   जीवन में मां का प्यार नजर आता है, लेकिन पिता का प्यार दिखाई नहीं देता। यदि मां धरती की तरह गहरी है, तो पिता आसमान की तरह अनंत और असीम। पिता का प्यार इतना गहरा होता है कि उस प्यार को देखने के लिए नजरों की जरूरत नहीं होती! केवल दिल से पिता का प्यार महसूस किया जा सकता है। बचपन में जब माँ प्यार से सिर पर हाथ फेरकर प्यार करने का अहसास कराती है! तब, पिता केवल यही पूछते थे होंगे कि किसी चीज की जरूरत तो नहीं है? पिता का यह सब पूछना ही उनके अव्यक्त प्रेम का प्रतीक है। उनकी बातों और आंखों में प्यार होता है, पर पिता कभी अपना प्यार जता नहीं पाता! हमारा समाज पुरूष प्रधान कहलाता हो, लेकिन यहां मातृशक्ति का वर्चस्व रहा है। अंकसूचियों में पिता का नाम अंकित हो ,लेकिन उसे कभी महत्व नहीं दिया गया। हकीकत तो यह है कि भले ही पिता एक मां की तरह अपने कोख से बच्चे को जन्म न दे पाए। लेकिन, बच्चे के जीवन में पिता का बहुत बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण स्थान होता है। वह जीवन के हर मुकाम पर अपनी संतान के साथ परछाई की तरह खड़ा होता है। यदि उनके महत्व को वांछित मान नहीं मिलता, तो इसका कारण है कि मानव जीवन में पिता की कल्पना एक सशक्त और ऐसे दृढ हृदय वाले इंसान के रूप में की गई है, जिसका न तो कलेजा पसीजता है और न कभी उसकी आंखें नम दिखाई देती है।
  ये ऐसा रिश्ता जो किसी भी धर्म, देश, भाषा, जाति और समाज में सदैव समान रहता है! जिसका ध्येय इन सब बातों से ऊपर सिर्फ अपनी संतान की सुरक्षा, उसके जीवन के निर्माण और उसे अच्छी सामाजिक पृष्ठभूमि देने का होता है। वो अपनी संतान में अपना प्रतिबिम्ब तो देखना चाहता है, परन्तु अपने से अच्छी और आकर्षक छवि में। पिता का अस्तित्व कुछ ऐसा होता है कि उसका सानिध्य प्राप्त करते ही एक घने वटवृक्ष की छाया में मिलने वाली शांति सा अहसास होता है। अपनी विशाल शाखाओं की छाया में सुरक्षा का अहसास प्रदान करने वाले वृक्ष जो प्रकृति की मार से कर रहे संघर्ष का अहसास छाया लेने वाले को नहीं होने देता, उसी तरह पिता सदैव संघर्ष कर अपनी संतान के जीवन को आकार देने के लिए अपनी खुशियो का त्याग करता है। पिता के त्याग की भावना उसकी बेटी या बेटे के जीवन की अंश पूंजी होती है। यही पहचान उसकी संतानों को बहुत से रिश्तों से परिचित कराती है। इसी पहचान और रिश्तों के जरिये संतान पिता के बताए और अपनी महत्वाकांक्षाओं की प्राप्ति के मार्ग पर चलकर अपने जीवन को सफल बनाती है।    
    गलतियों पर टोकने, बाल बढ़ाने, दोस्तों के साथ घूमने और टीवी देखने के लिए डांटने वाले पिता की छवि शुरु में बच्चे के बालमन में हिटलर की तरह रहती है। लेकिन, जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं, वह समझते जाते हैं कि उनके पिता के सख्त व्यवहार के पीछे उनका प्रेम ही रहता है! बचपन से एक पिता खुद को सख्त बनाकर बच्चों को कठिनाइयों से लड़ना सिखाता है। अपने बच्चों को खुशी देने के लिए वो अपनी खुशियों की परवाह तक नहीं करता। एक पिता जो कभी मां का प्यार देता हैं, कभी शिक्षक बनकर गलतियां बताता हैं तो कभी दोस्त बनकर कहता हैं कि मैं तुम्हारे साथ हूं! यह सब देखकर कहा जा सकता है कि पिता वो कवच हैं, जिनकी सुरक्षा में रहते हुए बच्चे अपने जीवन को एक दिशा देने की सार्थक कोशिश करते हैं। कई बार तो बच्चों को अहसास भी नहीं होता कि उनकी सुविधाओं के लिए उनके पिता ने कहाँ से और कैसे व्यवस्था की है।
  पिता की अनेक संतान हो सकती है परन्तु सभी के लिए पिता का भाव हमेशा सम होता है । यही पिता के हृदय की विशालता होती है। पिता कैसा भी हो सफल, असफल, अमीर, गरीब, शिक्षित या फिर अशिक्षित! उसका भाव अपनी संतान  को हर क्षेत्र में अपने से अधिक सफल देखने का ही होता है। मनुष्य इस रिश्ते पर आकर कितना अलग हो जाता है। यहीं आकर शायद उसकी प्रतियोगिता की भावना समाप्त हो जाती है। संतानों को कई रिश्तो की सम्पूर्णता प्रदान करने वाला पिता उसे अनुभव प्रदान करने के लिए उसके बाल साथी, शिक्षक, युवा मित्र और कई बार अंग रक्षक भी बनकर उसके व्यक्तित्व को निखरता है। इसीलिए पुत्र को पिता की परछाई भी कहा जाता है।
  पुत्री के लिए तो पिता ही सब कुछ होता है। यह वह बाबुल है, जो अपनी बुलबुल को क्रूर दुनिया में चारों तरफ बिखरे सैयादों से बचाता है। पिता के आश्रय में बेटी अपने को सुरक्षित तथा सशक्त पाती है। कहने को तो बेटियां सारी जिंदगी अपनी मां के सानिध्य में रहती हैं! लेकिन, जितना अवयक्त स्नेह उन्हें अपने पिता से मिलता है ,दुनिया में ऐसा स्नेह कहीं भी नहीं मिलता! पिता और पुत्र में अक्सर खटपट होती रहती है ,लेकिन बाप और बेटी में एक अवलम्बन तथा अवयक्त भावनाओं से जुड़ा संबंध होता है। इसका नजारा हमें आज के समाज में देखने को मिल रहा है। एक बार बेटा अपने पिता को न पूछे लेकिन बेटियों को हमेशा पिता की परवाह रहती है! वो ता उम्र उनके लिए चिंतित रहते हुए उनकी सेवा में समर्पित रहती है।  
  जितने भी सफल व्यक्तियों को देखेंगे, तो उनके जीवन की सफलता में उनके पिता की भूमिका होती है। उन्होंने अपने पिता से प्रेरणा ली होती है और उनको आदर्श माना होता है। इसके पीछे सिर्फ यही कारण होता है कि कोई व्यक्ति लाख बुरा हो, लाख गंदा, लेकिन अपनी संतान को वह अच्छी बातें और संस्कार ही देने का प्रयत्न करता है! ऐसे कई उदाहरण हैं कि कोई व्यक्ति नालायक होता है, शराबी होता है, जुआरी होता है लेकिन ज्यों ही वह पिता बनता है अपनी सारी बुरी आदतें इसलिए छोड़ देता है ताकि उसके बच्चों पर बुरा असर न पड़े। हालाँकि, यह संसार बहुत बड़ा है और इसमें लोग भी भिन्न प्रकार के हैं। पर, यह कहा जा सकता है कि अपने बच्चे के लिए हर पिता बेहतर कोशिश करता है, अपनी क्षमता से कहीं ज्यादा! इसलिए वह तारीफ के काबिल तो होता ही है! अपने पिता से अफसोस और शिकायतें तो सिर्फ वो लोग करते हैं जिन्होंने जिंदगी में अपने आप को साबित नहीं किया वरना हर पिता का जीवन सीखने योग्य होता है। पिता ही दुनिया का एक मात्र शख्स है, जो चाहते है कि उसका बच्चा उससे भी ज्यादा तरक्की करे, उससे भी ज्यादा नाम कमाए।
 समय के साथ हर तरह का बदलाव तो स्वाभाविक हैं! लेकिन, पिता के कर्तव्य में कोई बदलाव नहीं आएगा! क्योंकि, यह सब हमारी संस्कृति और संस्कार में निहित है। बदलते जमाने और रोजगार की जरूरतों की वजह से आज कई बच्चे उनके  माता-पिता से दूर हो गए हैं । ऐसे में वह उन बुजुर्ग कदमों को चाहकर भी सहारा नहीं दे पा रहे हैं, उनका अकेलापन नहीं दूर कर पा रहे हैं। यह मजबूरी मन में एक टीस से भर देती है। ऐसे में विभिन्न अवसरों, त्यौहारों पर उन्हें समय अवश्य ही देना चाहिए, बेशक वह अवसर 'फादर्स डे' ही क्यों न हो!
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