Monday 12 June 2017

समय और पसंद का मोहताज रहा फिल्म संगीत


- एकता शर्मा 

फिल्म संगीत की भी अपनी अलग कहानी है! समय, काल और दर्शकों की मनःस्थिति को देखते हुए इसमें बदलाव होते रहे हैं! जबकि, फिल्मों का शुरुआती लंबा दौर खामोश बना रहा! फिल्मी संगीत की शुरुआत का समय 40 का दशक था! तब विश्व युद्ध और उसके बाद आजादी के बाद बंटवारे से घिरे देश के माहौल ने संगीत को भी प्रभावित किया! इस समयकाल में दो तरह के गाने सुनाई दिए! एक वे गीत जिनमें रोमांस का सुख था या विरह की पीड़ा! दूसरी तरह के गीत देश प्रेम और बंटवारे के दर्द से उभरी भावनाएं      लिए थे! 

  माना जाता है कि 40 से 50 का दशक फिल्म संगीत के लिए स्वर्णिम काल था। इस काल में फिल्म संगीत की तकनीक में सुधार आना शुरू हुआ! परंपरागत हिंदुस्तानी संगीत वाद्य यंत्रों के साथ विदेशी वाद्य भी सुनाई देने लगे! ढोलक की थाप को गिटार की जुगलबंदी के साथ जोड़ा गया। संगीत को नई शक्ल देने वालों में नौशाद, सचिनदेव बर्मन और शंकर जयकिशन का नाम लिया जा सकता है! इस दौर में देव आनंद की फिल्मों के कई गीत मशहूर हुए! गुरुदत्त की फिल्म 'प्यासा' के गीत ‘दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है' हो या ‘वक्त ने किया क्या हंसी सितम' जैसे गीतों में अलग ही माधुर्य सुनाई दिया! 'मुगले आजम' जिस तरह की भव्य फिल्म थी, उसके संगीत में भी नौशाद ने उसी भव्यता का अहसास कराया! 'तेरी महफ़िल में किस्मत आजमाकर हम भी देखेंगे' जैसे गीत सुनकर ही लग जाता है, कि इनका फिल्मांकन किस भव्यता से किया गया होगा! 

  जैसे-जैसे वक़्त गुजरता गया, फिल्म संगीत में भी उतर चढ़ाव आने लगा। बजाए ऊपर उठने के ये संगीत ढलान पर आने लगा! 40 के दशक के गीतों में शायरी और संगीत का जो तालमेल था, वो गायब होने लगा! 50 और 60 के दशक के बाद वाले गीतों में रुमानियत ज्यादा थी! लेकिन, इसके बाद इस संगीत पर आरडी बर्मन का प्रभाव हावी हो गया! उन्होंने योरपीय संगीत साथ नए प्रयोग जो शुरू किए। लेकिन, 80 के दशक के शुरुआत से फ़िल्मी गीतों से माधुर्य गायब हो गया! माधुरी के ठुमकों ने गीतों को गिनती में ढाल दिया और एक, दो, तीन ... जैसे घटिया गीतों ने जन्म लिया! 'जुम्मा चुम्मा दे दे' के बाद 'चोली के पीछे क्या है ...' और उसके बाद गोविंदा स्टाइल के गीत 'एक चुम्मा तू मुझको उधार दई दे ...' ने मीठे सुकून के लिए सुने जाने वाले फिल्म संगीत को एक तरह से ख़त्म ही कर दिया! 

  फिर 90 का दशक ऐसा आया, जिसमें फिल्म संगीत का भटकाव और द्वंद साफ़ नजर आने लगा! इसलिए भी कि ये पीढ़ी के बदलाव का भी वक़्त था! गीतों में माधुर्य चाहने वाले लोग भी थे और डिस्को के दीवाने भी! इस दौर में सबसे ज्यादा प्रयोग किए गए! भप्पी लाहिरी ने मिथुन चक्रवर्ती स्टाइल के गीतों की रचना के लिए मैलोडी को हाशिए पर पटक दिया! फिर लंबे इंतजार के बाद 'रोजा' के गीत संगीत समझने वालों के कान में पड़े! इसके साथ ही जन्म हुआ एआर रहमान का! जैज जैसी योरपीय संगीत शैली को रहमान ने फिल्म संगीत में चतुराई से पिरोया! स्वर के साथ वाद्य यंत्रों का इस्तेमाल करने में रहमान को महारथ हांसिल है। इसके बाद याद रखने योग्य संगीतकार हैं अमित त्रिवेदी, जिसे लीक से हटकर संगीत रचना के लिए जाना जाने लगा है। बदलते समाज के साथ कोई चीज तेजी से बदलती है, तो वो है फिल्म संगीत! क्योंकि, जब सोच बदलता है तो संगीत सुनने की पसंद भी बदल जाती है, वही आज भी हो रहा है। 

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