Monday 12 June 2017

हिंदी सिनेमा में बारिश का तड़का

- एकता शर्मा 

  हिंदी सिनेमा में बारिश को कई मकसदों के लिए इस्तेमाल किया गया है। फ़िल्मी कथानक में, गीतों में, दृश्यों में और एक्शन सीन में भी बारिश का इस्तेमाल होता रहा है! हर मनोभाव को बारिश का सहारा लेकर दर्शाया गया। फिल्मों में बरसों से नायक-नायिकाओं और अन्य चरित्रों, परिस्थितियों और मनोदशाओं को व्यक्त करने के लिए भी बारिश का सहारा लिया जाता रहा है। 1949 में बनी राजकपूर की चर्चित फिल्म 'बरसात' का तो शीर्षक ही सारे मनोभाव प्रदर्शित करता है। फिल्म का शीर्षक गीत 'बरसात में तुमसे मिल हम सजन' फुहार की तरह ही मनो भावनाओं का प्रतिनिधित्व करता है। 

   2007 में आई फिल्म 'लाइफ इन ए मेट्रो' में रोमांस इसी बारिश के मौसम में परवान चढ़ता है। 1969 की फिल्म 'आराधना' में बरसात में 'रूप तेरा मस्ताना' गीत गाते हीरो और हीरोइन, 1973 की फिल्म 'जैसे को तैसा' में 'अब के सावन में जी डरे' गीत के दौरान नायक-नायिका की अदाएं उस वक़्त के दर्शकों को आज भी याद होगी। मनोज कुमार की 1974 में आई 'रोटी कपड़ा और मकान' में नायिका का 'हाय हाय ये मजबूरी' गाते हुए नायक को ताना देना कि 'तेरी दो टकिया की नौकरी मेरा लाखों का सावन जाए!' आज भी लुभाता है।   
  ऐसी कई फिल्में हैं, जिनके नाम में ही बरसात का महत्व समझ आता है। सावन की घटा (1966), आया सावन झूम के (1969), सावन को आने दो (1979), प्यासा सावन (1981), बरसात (1949, 2005), बरसात की एक रात (1998) और बारिश (1957, 1990) ऐसी कुछ फिल्में हैं, जिनके नाम में तो सावन या बरसात है परंतु उनके कथानक से बारिश का कोई सरोकार नहीं था। कुछ समय पहले अंग्रेजी और हिंदी में बनी मीरा नायर की 'मानसून वेडिंग' की कथावस्तु में जरूर बारिश का महत्व था। 
कई फिल्मों के बहुत से ऐसे दृश्य हैं जिनमें प्रेम भाव प्रकट करने के लिए बारिश का सहारा लिया गया है। 1998 में आई 'चांदनी' में विनोद खन्ना अपनी दिवंगत पत्नी की याद में जो गीत गाता है उसके लिए बारिश की पृष्ठभूमि सही लगती है। 1984 की फिल्म 'मशाल' में दिलीप कुमार अपनी घायल पत्नी की मदद के लिए भींगी रात में ही गुहार लगाते हैं। कंपनी (2002) और जॉनी गद्दार (2007) के दृश्यों, जिसमें काफी खून-खराब था को फिल्माने के लिए बारिश को ही उपयुक्त समझा गया।  
   फिल्मों के हर चरित्र को बारिश का आनंद लेने के अनुकूल दिखाया जाता है। 1977 में आई 'प्रियतमा' में नीतू सिंह द्वारा 'छम छम बरसे घटा' गीत और 1997 में माधुरी दीक्षित का 'दिल तो पागल है' में बच्चों के साथ सड़कों पर नाचते हुए गाना 'चक धूम धूम' कुछ ऐसी ही कहानी सुनाते हैं। 1973 में बनी राजेश खन्ना, शर्मीला टैगोर और राखी की फिल्म 'दाग' का उल्लेख करना जरुरी है। इस फिल्म की लगभग सभी घटनाएं भारी बरसात में ही होती है।
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